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मान सिंह तोमर

 


तोमर राजवंश के ग्वालियर साम्राज्य के यशस्वी व प्रतापी महाराजा मान सिंह तोमर थे | 

उनकी  प्रतिमा ग्वालियर में महाराजा मान सिंह तोमर चौराहे पर कैप्टन रूप सिंह स्टेडियम के निकट स्थापित है, तोमर राजवंश में जितने भी राजा महाराजा हुये उन्हें इतिहासकारों ने एकमत से कहा है कि तोमर राजवंश के सारे राजा महाराजा बेहद उच्च कोटि के विद्वान एवं धर्मज्ञ , साहसी, वीर , पराक्रमी और उदार , त्यागी व बलिदानी हुये , विद्धता और उदारता में , रण कौशल, बहादुरी पराक्रम में जहॉं ग्वालियर महाराजा मान सिंह तोमर का नाम सर्वोपरि आता है तो उन्हें अति उच्च कोटि का साहित्यकार, धर्म मर्मज्ञ , संस्कृति रक्षक व सनातन धर्म का सर्वाच्च सेवक भी माना जाता है

, राजपूती काल गणनाओं में महाराजा मान सिंह तोमर का नाम ऐसे वीर योद्धा के रूप में शुमार किया जाता है जिसने अपने जीवन काल में अनेक युद्ध किये और सदैव विजयी रहे | 


 हर शत्रु को हर रण में बुरी तरह न केवल मार भगाया बल्कि मध्यभारत की ओर या ग्वालियर चम्बल की ओर जिसने भी ऑंख उठाने की जुर्रत की उसका या तो शीष उतार लिया या कैद कर लिया या भागने पर मजबूर कर दिया | उन्होंने ३ साल राज किया | 

मान सिंह तोमर  का जन्म 

मान सिंह तोमर  का जन्म 1486 ईस्वी में हुआ था | आज 2023 है मतलब आज से 537 साल पहले | उनका जन्म ग्वालियर के तोमर राजपूत शासक राजा कल्याणमल के घर हुआ | उनको राजा की गद्दी मिली व उन्होंने ३० साल राज किया | इतिहास-लेखक फरिश्ता ने मानसिंह को वीर और योग्य शासक बतालाया है। अंग्रेज इतिहास-लेखको ने मानसिंह के राज्यकाल को तोमर-शासन का स्वर्णयुग (Golden Age of Tomer Rule) कहा है।

ग्वालियर का किला बनाना 

यह एक बहुत ही अद्भुत किला है जो मान सिंह तोमर ने बनाया | यही उसकी ९ रानियाँ रहीं | एक ९वी रानी के लिए अलग से गुजरी महल बनवाया | यह किला बलुआ पथर से बनाया गया है व एक उचे परबत पर स्थिर किया गया है | यह तक पहुंचने के दो रस्ते है एक पैदल चढ़ाई  व्हीकल से | 

1. ग्वालियर का किला भूल भूलिया जैसा बनाया गया था , हरेक कमरे के ५ दवाजे है 
२. एक बार मान सिंह ने देखा के लड़की तो बलद आपस में लड़ रहे है , एक लड़की ने अपने बल से उनको अलग किया व मान सिंह उसकी बहादुरी से प्रभावित हुए व उनसे विवाह की इच्छा जताई | लड़की ने कहा मेरी तीन शर्ते है | पहले ग्वालियर के किले में में अलग महल बनवाओ | मेरे गांव से पानी किले में पहुचाओं | मैं पर्दा नहीं करुँगी | राजा उसकी शर्ते पूरी की व उस से विवाह किया | 
३. बाबर की इब्राहिम लोदी पर पानीपत जित से यह किला बाबर के हाथ लग गया व उसी वंश में जहाँगीर का जन्म हुआ | इसी किले में गुरु हरगोबिंद साहिब को रखा गया था व जब जहाँगीर को डर लगा तो वो गुरु जी को रहा करना चाहते थे | पर गुरु जी ने कहा जो बेगुनाह ५२ राजे है उनको भी रहा करो | यह बहुत मुश्किल था | गुरु जी ने ५२ कलियाँ वाला कपड़ा सिलवाया | व सभी उसको पकड़ कर बाहर आ गए | 
४. इस किले में ५२ खम्भों वाला शिव मंदिर था जिसे जहाँगीर ने तोड़ कर इस किले का धन लुटा व इसे जेल बना दिया | 
५. इस किले में ऊपर कमरे के निचे कमरे की बात करने के लिए टेलीफोन सिस्टम के पाइप लगे हुए है | 

राष्ट्र की रक्षा के लिए मान सिंह तोमर द्वारा किये युद्ध 


१. बहलोल लोदी से युद्ध 

ग्वालियर पर सिकंदर लोदी के पिता, बहलोल ने आक्रमण किए, फिर सिकंदर ने ग्वालियर का कचूमर निकालने में कसर नहीं लगाई।

२. बहलोल लोदी के पुत्र  सिकंदर लोदी से युद्ध 

 सिकंदर ग्वालियर पर पाँच बार वेग के साथ आया। पाँचों बार उसको मानसिंह के सामने से लौट जाना पड़ा।  उसके दरबारी इतिहास–लेखकों, अखबार नवीसों ने लिखा है कि मानसिंह ने प्रत्येक बार सोना-चाँदी देने का वादा सोना-चाँदी नहीं देकर टाला। आश्चर्य है सिकंदर सरीखा कठोर योद्धा मान भी लेता था ! अंत में सिकंदर को 1504 में आगरा का निर्माण इसी मानसिंह तोमर को पराजित करने के लिए करना पड़ा, इसके पहले आगरा एक नगण्य–सा स्थान था। तो भी सिकंदर सफल न हो पाया। ग्वालियर पर घेरा डालकर नरवर पर चढ़ाई कर दी। नरवर ग्वालियर राज्य में था। उस पर दावा राजसिंह कछवाहा का था। राजसिंह ने सिकंदर का साथ दिया। तो भी नरवर वाले 11 महीने तक लगातार युद्ध में छाती अड़ाए रहे। जब खाने को घास और पेड़ों की छाल तक अलभ्य हो गयी, तब उन लोगों ने आत्म-समर्पण किया। फिर सिकंदर ने मन की जलन नरवर स्थित मंदिरों और मूर्तियों पर निकाली। वह छह महीने इसी उद्देश्य से नरवर में रहा।

३. सिंकंदर लोदी के पुत्र इब्राहिम लोदी से युद्ध 

इब्राहिम लोदी अपने भाई को मार कर दिल्ली का बादशाह बना | 

इनके जीते जी एक भी बाहरी आक्रमणकारी ग्वालियर चंबल साम्राज्य में न तो अपना झंडा फहरा सका , न युद्ध में इन वीरों के समक्ष टिक सका | जब इब्राहिम लोदी के साथ युद्ध में मान सिंह तोमर  वीर गति को प्राप्त हुए तो 


 ग्वालियर महाराजा मान सिंह तोमर के पुत्र विक्रमादित्य सिंह तोमर के शासनकाल में इब्राहीम लोधी से भीषण युद्ध करते हुये जब इन राजकुमारों पर किसी भी प्रकार से लोधी काबू नहीं कर सके और इनकी वीरता के समक्ष टिक न सके तो इन दोनों राजकुमारों को इब्राहीम लोधी ने धोखे से विष देकर मरवा दिया, 

इन दोनों ही वीर राजकुमारों ने भी अपने खुद के विवाह स्थानीय ग्वालियर चम्बल क्षेत्र के गूजरों में किये , ये दोनों राजकुमार तोमर राजपूत ही कहलाये किंतु राजपूतों में आगे वैवाहिक संबंध रखने के बजाय गूजरों में ही वैवाहिक संबंध रखकर अपनी वंश परंपरा आगे बढ़ाई और इनके वंशजों ने अपना उपनाम जाति गोत्र में तोमर की जगह , तोंगर लिखना व कहना शुरू कर दिया , तोंगर तब से गूजर कहे पुकारे जाने लगे और गूजरों में इन्हें सबसे बड़ा ( ये आधे क्षत्रिय राजपूत और आधे गूजर हैं ) कुल माना जाता है , तबसे तोंगर गूजर , आज तक खुद को तोमर क्षत्रिय राजपूत भी मानते हैं और शुद्ध गूजर भी । यानि वे खुद को आधा क्षत्रिय राजपूत और आधा गूजर मानते हैं ।




महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ग्वालियर किले का पुनरूद्धार व जीर्णोद्धार कराया और सिकंदर लोदी और इब्राहीम लोदी को अनेकों बार धूल चटाई ... इतिहास में प्रसिद्ध लड़ाईयों में लोदीयों को महाराजा मान सिंह तोमर ने कई बार बुरी तरह मार भगाया .... जितने यशगान महाराजा मान सिंह तोमर के गाये जाते हैं उसमें सबसे अधिक महाराजा मानसिंह तोमर के साथ संगीत सम्राट तानसेन के भी यशगान प्रसिद्ध है .... महाराजा मान सिंह तोमर के रहते कोई मुगल या लोधी या बाहरी आक्रमणकारी मध्य भारत तक पॉंव नहीं धर पाया ... महाराजा मान सिंह तोमर का ही एक सेनापति कुंवर तेजपाल सिंह तोमर था जिसने दिल्ली के लोधी दरबार में में सिंह गर्जना कर हुंकार भरी थी ... कि मैं वह तोमर हूँ जिसके पुरखे ने इसी दिल्ली में किल्ली गाड़ी थी .... जो शेषनाग के फन को चीरती हुयी धरती में धंसी और पार कर गई .... उसने लोदी के ही दरबारमें लोदी को बुरी तरह गरिया डाला और कहा कि हम तोमर हैं तेरे जैसे दुष्टों को चीर कर धरती को तेरे लहू से स्नान करा देंगें .... इस पर लोदी ने दूत की मर्यादा भूल कर उसका सिर वहीं कलम करवा दिया था ओर दिल्ली के पुराने किले के तोमर महल में उसका कटा हुआ सिर लटकवा दिया था, लेकिन उसने अपना सिर कटने से पहले लोदी के दरबार में काफी प्रलय ढा दी थी और लोदी के कई दरबारी ओर सेना प्रमुखों को मार कर मौत के घाट उतार लोधी का दरबार लहू से लाल कर दिया था ...

 महाराजा मान सिंह तोमर महान साहित्यकार भी थे ... उन्होंने अनेक दोहों , चौपाईयों , कविताओं एवं अनेक छन्दों की रचना की .. विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ मान कुतूहल की रचना उन्हीं ने की.


अपनी मृत्युकाल तक अविजित रहे इस विजेता महाराजा की सबसे बड़ी खासियत थी संगीत, नृत्य, साहित्य व प्रभु से लगाव , प्रेम प्यार और प्रीति की साक्षात प्रतिमूर्ति , महाराजा मान सिंह तोमर की राजपूत रानीयों के अलावा एक गूजर प्रेमिका थी जिसका नाम निन्नी था , सुंदरता व बहादुरी की बेजोड़ मिसाल निन्नी , महाराजा मान सिंह तोमर की अतुल्य प्रेमिका थी , जिससे महाराजा मान सिंह तोमर ने विधिवत विवाह कर ग्वालियर किले के निचले हिस्से में एक अलग से महल बनवाया , जिसे गूजरी महल कहा जाता है , मान मंदिर ( महाराजा मान सिंह तोमर के राजमहल) के ऐन नीचे ग्वालियर किले के निचले हिस्से की तराई में गूजरी रानी का राजमहल स्थित है, महाराजा मान सिंह तोमर के राजमहल से एक सीधी सुरंग गूजरी रानी के राजमहल , गूजरी महल तक जाती है, इसी सुरंग के जरिये महाराजा मान सिंह तोमर अपनी प्रियतमा रानी निन्नी से मिलने जाते थे, बेहद खूबसूरत नेत्रों व कमल नयनों वाली इस बहादुर , शूर वीर गूजर रानी को उसकी सुंदरता से , सौंदर्य से अभिभूत होकर महाराजा मान सिंह तोमर ने उसे ''मृगनयनी'' नाम दिया और इतिहास में महाराजा मान सिंह तोमर की यह प्रेमिका रानी मृगनयनी नाम से ही विख्यात हुई, महाराजा मान सिंह तोमर से मृगनयनी रानी निन्नी के दो बेहद खूबसूरत और , पराक्रमी , शूर वीर बलवान पुत्र हुये , महाराजा मान सिंह तोमर ने उन्हें ग्वालियर दुर्ग के निकट क्षेत्रों की जागीर दी और स्वतंत्र जागीरदार बनाकर ग्वालियर किले के एक ओर चंबल क्षेत्र में सांक नदी क्षेत्र से आसन नदी व क्वारी नदी क्षेत्र के आसपास का समूचा क्षेत्र सौंपा व क्षेत्र रक्षा की जिम्मेवारी सौंपीं , इसी प्रकार ग्वालियर दुर्ग के दूसरी ओर का क्षेत्र सिन्ध नदी से लेकर पहुज नदी तक का क्षेत्र सौंपा गया , महाराजा मान सिंह तोमर के और मृगनयनी रानी निन्नी के इन दोनों शूर वीर पुत्रों ने अपनी जागीरों की न केवल भव्य संचालन व्यवस्था की बल्कि लोधीयों को अनेक बार धूल चटा दी , 


ग्वालियर महाराजा मान सिंह तोमर बेहद सुप्रसिद्ध वैभवशाली, बहुत प्रतापी और यशस्वी महाराज रहे हैं ... ग्वालियर को जो आज संगीत की राजधानी कहा जाता है यह महाराजा मान सिंह तोमर के कारण ही कहा जाता है .. महाराजा मान सिंह तोमर ने ही ध्रुपद का आविष्कार किया ... महाराजा मान सिंह तोमर के दरबार में ही थे महान गायक और संगीतकार... तानसेन और बैजू बावरा ....

किताबें जो . महाराजा मान सिंह तोमर लिखी 

. महाराजा मान सिंह तोमर के ही एक महा आमात्य खेमशाह ने प्रसिद्ध ग्रंथ''बेताल पच्चीसी''की रचना मानिक कवि से कराई ... मान कौतूहल का फारसी अनुवाद फकीर उल्ला सैफ खॉं ने किया ...

 इसके अलावा महाराजा मान सिंह तोमर के दरबार में प्रसिद्ध साहित्यकार व संगीतकार बक्शु, महमूद लोहंग, नायक पाण्डेय, देवचंद्र, रतनरंग, मानिक कवि, थेघनाथ, सूरदास (बचपन काल में) , गोविंददास, नाभादास, हरिदास, कर्ण, नायक गोपाल, भगवंत, रामदास वगैरह थे ... 

भक्तमाल नामक ग्रंथ यहीं महाराजा मान सिंह तोमर के ही दरबार काल में लिखा गया, स्वयं महाराजा मान सिंह तोमर ने सावंती, लीलावती, षाढव, मानशाही, कल्याण आदि रागों के गीत लिखे हैं , 

''रास '' नामक नृत्य नाटिका का आविष्कार स्वयं महाराजा मान सिंह तोमर ने ही किया ... जो कि आज रास लीला के नाम से बेहद प्रसिद्ध नृत्य नाटिका कही पुकारी जाती है,

 महाराजा मानसिंह तोमर ने ग्वालियर के निकट ही बरई में विशाल रास मण्डल का निर्माण कराया , रास नृत्य शैली को बृज क्षेत्र में ले जा कर हरिराम, हरिवंश ओर हरिदास ने चरमोत्कर्षपर पहुँचाया .


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क्रांतिकारी: मान सिंह तोमर
मान सिंह तोमर
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