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कमेंटेटर – आचार्य उदयवीर जी शास्त्री
इस दर्शन के प्रवर्तक महर्षि व्यास हैं। इस दर्शन में चार अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में चार उप अध्याय हैं। सूत्रों की संख्या 555 है। इस दर्शन का उद्देश्य परमात्मा को वेदों का परम अर्थ समझाना है। स्थायी शांति और मोक्ष ब्रह्म की प्राप्ति से ही प्राप्त होता है।
इस दर्शन को उत्तर मीमांसा भी कहा जाता है। जैसे पूर्व मीमांसा यज्ञ के दार्शनिक पक्ष पर प्रकाश डालता है, उसी प्रकार उत्तर मीमांसा ईश्वर के दर्शन पर प्रकाश डालता है। इस दर्शन में ब्रह्म के स्वरूप की चर्चा की गई है।
इस दर्शन में ब्रह्मा, जीव और प्रकृति की प्रकृति, इन तीनों की प्रकृति और उनके अंतर्संबंध आदि की चर्चा की गई है।
इस दर्शन का मुख्य लक्ष्य ईश्वर को जानना, परमानंद को प्राप्त करना है।